भारतीय इतिहास – indian history in hindi pdf 2024 free

indian history in hindi pdf भारतीय इतिहास विश्व का एक प्राचीन और समृद्ध इतिहास है जिसमें विभिन्न युगों में सम्राटों, राजाओं और सांस्कृतिक विकास की गहरी धाराएं हैं। इसमें वैदिक सभ्यता, मौर्य, गुप्त, दिल्ली सल्तनत, मुघल साम्राज्य और ब्रिटिश शासन के प्रमुख युग शामिल हैं। भारतीय इतिहास में विविधता और ऐतिहासिक घटनाओं की अद्वितीयता उसे दुनिया भर में विशेष बनाती है।

indian history in hindi pdfdowanload

indian history in hindi pdf
indian history in hindi pdf

भारतीय संगीत का इतिहास

वेदिक काल (1500-500 ईसा पूर्व): वेदों में गायन का महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे संगीत की प्रारंभिक धारा प्राप्त होती है।

भारतीय संगीत का इतिहास बहुत ही विशाल और समृद्ध है। यह संगीत विभिन्न कालों और क्षेत्रों में विकसित हुआ है और उसका प्रमुख लक्षण धर्म, संस्कृति और भाषा के साथ जुड़ा होता है। भारतीय संगीत का इतिहास विभिन्न युगों में विभाजित होता है:

माध्यमिक काल (500 ईसा पूर्व – 500 ईसा): गांधार और नाट्यशास्त्र जैसे ग्रंथों में संगीत के विकास की स्थिति मिलती है।

भक्ति काल (500-1700 ईसा): संत कवियों और भक्तों ने संगीत के माध्यम से धर्मिक भावनाओं का व्यक्तित्व दिखाया।

मुग़ल काल (1200-1700 ईसा): मुग़ल सम्राटों के आदर्शों और स्थापत्य कला के प्रभाव में भारतीय संगीत का विस्तार हुआ।

मोदर्न काल (1700 ईसा के बाद): ब्रिटिश और अन्य पश्चिमी प्रभावों के साथ, भारतीय संगीत में नई प्रकार की प्रकृतियों और गायन-वादन शैलियों का विकास हुआ।

1757 से 1857 तक भारतीय इतिहास

1757 से 1857 तक भारतीय इतिहास एक महत्वपूर्ण और संक्रमणकारी अवधि रही है, जिसे ब्रिटिश शासन की शुरुआत और स्वतंत्रता संग्राम की प्रारंभिक अवधि के रूप में जाना जाता है। इस अवधि के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं:

  1. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन (1757-1857): 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय सम्राटों और राजाओं के साथ समझौते करके अपना शासन स्थापित किया। इसके पश्चात्, कंपनी ने विभिन्न भागों में अपना शासन फैलाया, जिसका प्रमुख केंद्र कलकत्ता, मद्रास, और बॉम्बे था।
  2. सोने की चिड़िया (1765): ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बेंगल के नवाब से सोने की चिड़िया समझौता किया, जिसके परिणामस्वरूप इसे उसकी नियंत्रण के अंतर्गत रखा गया। यह उनकी शक्ति में एक महत्वपूर्ण बदलाव था।
  3. सैरकारी नियम (डायरेक्ट गवर्नेंस) (1773): पिट्स इक्विटी अधिनियम ने ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा भारतीय ईस्ट इंडिया कंपनी पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने ब्रिटिश सरकार को अधिक संशोधित रूप में भारतीय शासन पर निर्देशित किया।
  4. सिपाही मुतिनी (1857-1858): इस दौरान, भारतीय सेनाओं के आदिवासी ने विद्रोह किया, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक बड़ी विद्रोह था। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रारंभिक घटना के रूप में भी देखा जाता है। इसके पश्चात्, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संस्कृति पर सीधा नियंत्रण ले लिया और 1858 में राज की अधिग्रहण की घोषणा की।

भारतीय इतिहास का कालक्रम

·  प्रागैतिहासिक काल (अज्ञातविद्वानसभ्यता, 7000 ईसा पूर्व – 2500 ईसा पूर्व): इस अवधि में भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न सभ्यताओं का विकास हुआ, जिसमें हरप्पा सभ्यता और मौर्य सभ्यता जैसी महत्वपूर्ण सभ्यताएं शामिल हैं।

·  प्राचीन भारतीय इतिहास (2500 ईसा पूर्व – 700 ईसा पूर्व): इस काल में वैदिक सभ्यता, जनपद, महाजनपद, नन्द वंश, मौर्य वंश, गुप्त वंश और पोस्ट-गुप्त युग जैसी विभिन्न सभ्यताएं और साम्राज्य उत्थान और विस्तार का समय था।

·  मध्यकालीन भारतीय इतिहास (700 ईसा – 1857 ईसा): इस काल में भारत में विभिन्न शासकीय साम्राज्य, धर्मों के विकास, साहित्य, कला और संस्कृति की विविधता थी। इसमें राष्ट्रकूट वंश, चोल वंश, विजयनगर साम्राज्य, मुघल साम्राज्य, मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश शासन की शुरुआत शामिल है।

·  नवीन भारतीय इतिहास (1857 ईसावर्तमान): इस काल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, स्वतंत्रता की प्राप्ति, अर्थव्यवस्था का विकास, सामाजिक परिवर्तन, राजनीतिक घटनाएं और आधुनिक भारत का निर्माण हुआ।

भारतीय मुद्रा का इतिहास

·  प्राचीन काल (अज्ञात – 6वीं सदी ईसा पूर्व): भारतीय मुद्रा का प्रारंभिक चरण सोने और चांदी के सिक्के के रूप में हुआ। मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के सिक्के प्रसिद्ध हैं जो 6वीं सदी ईसा पूर्व में चापे गए थे।

·  मध्यकालीन काल (8वीं सदी – 18वीं सदी): मुग़ल साम्राज्य के शासनकाल में भारतीय मुद्रा का विकास और उत्थान हुआ। अकबर, जहांगीर, और शाहजहाँ के शासनकाल में मुग़ल सिक्के प्रमुख थे। इसके अलावा, राजपूत राज्य, विजयनगर साम्राज्य, और मराठा साम्राज्य भी अपनी स्वतंत्र सिक्के चापते थे।

·  कोलोनियल पीरियड (18वीं सदी के अंत – 20वीं सदी की शुरुआत): ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय मुद्रा पर अपना नियंत्रण जमाया। यहां वे प्रसिद्ध सोने और चांदी के सिक्के चापते थे, जिनमें विभिन्न आदर्शों और चिन्हों का उपयोग किया गया।

·  स्वतंत्रता के बाद (1947 के बाद): भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सरकार ने अपनी स्वतंत्र मुद्रा का निर्माण किया। 1950 में भारतीय रूपया (INR) को भारतीय मुद्रा का मुख्य चलनी वाला और आधिकारिक रूप से निर्माण किया गया।

भारतीय रेल का इतिहास

भारतीय रेल का इतिहास एक रोमांचक कहानी है, जो भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद करने वाली एक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी है। यहां हम भारतीय रेल के मुख्य चरणों का उल्लेख करेंगे:

  1. आरंभिक चरण (1853-1947): भारतीय रेल की शुरुआत 16 अप्रैल, 1853 को हुई थी, जब बॉम्बे से थेणे तक पहली ट्रेन चली। इसके बाद रेलवे नेटवर्क को दक्षिणी और पश्चिमी भारत में विस्तारित किया गया, जिसने व्यापक तरीके से यातायात को सुविधाजनक बना दिया। ब्रिटिश शासनकाल में रेलवे नेटवर्क का विस्तार हुआ और यह अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  2. स्वतंत्रता के बाद (1947 के बाद): भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारतीय रेलवे का विकास गति पकड़ा। नई रेलवे लाइनें और प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए, जिसने देश के विकास और यातायात को सुविधाजनक बनाया। भारतीय रेलवे का नेटवर्क विस्तारित हुआ और उसने समग्र देश की अर्थव्यवस्था, सामाजिक विकास और व्यापार को प्रभावित किया।
  3. आधुनिक युग (वर्तमान): आज के समय में भारतीय रेलवे एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक परिवहन सेवा है, जिसमें देश भर में लाखों किलोमीटरों की लाइनें, हजारों स्टेशन्स और लाखों करोड़ यात्री रोजाना यात्रा करते हैं। इसके साथ ही, भारतीय रेलवे तकनीकी उन्नति और अनुकूलन में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं।

भारतीय मूर्तिकला का इतिहास

भारतीय मूर्तिकला का इतिहास भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास का प्रतिबिम्ब है। यहां हम भारतीय मूर्तिकला के मुख्य चरणों का वर्णन करते हैं:

  1. प्राचीन काल (अज्ञात – 6वीं सदी ईसा पूर्व): भारतीय मूर्तिकला का प्रारंभ वैदिक सभ्यता के काल से होता है, जहां देवताओं और उनकी पूजा के लिए भव्य मूर्तियाँ बनाई जाती थीं। इसके बाद मौर्य, गुप्त और पोस्ट-गुप्त काल में भी मूर्तिकला का विकास हुआ, जिसमें धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को उत्कृष्टता से व्यक्त किया गया।
  2. मध्यकालीन काल (8वीं सदी – 18वीं सदी): इस काल में भारतीय मूर्तिकला का स्वरूप और शैली में परिवर्तन आया। मुग़ल साम्राज्य के कलाकारों ने अपनी अद्वितीय कला प्रणाली के माध्यम से विभिन्न भव्य और रचनात्मक मूर्तियाँ बनाईं। इस पीरियड में मूर्तिकला का विकास राजपूत राज्यों, विजयनगर साम्राज्य और अहमदनगर साम्राज्य में भी देखा गया।
  3. कोलोनियल पीरियड (18वीं सदी के अंत – 20वीं सदी की शुरुआत): ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय मूर्तिकला का विकास और परिवर्तन हुआ। इस काल में यूरोपीय शैलियों का प्रभाव भी दिखाई दिया, जिसने भारतीय मूर्तिकला को नए और विशेष रूप में प्रभावित किया।
  4. स्वतंत्रता के बाद (1947 के बाद): भारत की स्वतंत्रता के बाद, मूर्तिकला का पुनर्जीवन हुआ और यह एक अद्वितीय और समृद्ध शैली में विकसित हुई। आधुनिक कलाकारों ने भारतीय परंपराओं को नए दृष्टिकोण और उपयोग के साथ मूर्तिकला में अपनाया।

भारतीय सिक्कों का इतिहास

भारतीय सिक्कों का इतिहास बहुत विशाल है और इसमें विविधता भी है। भारतीय सिक्के भारतीय अर्थव्यवस्था, संस्कृति और ऐतिहासिक परंपराओं का प्रतीक हैं। इनका इतिहास अनुभवों, युगों और विभिन्न शासकों के प्रभाव के साथ जुड़ा हुआ है।

प्राचीनकाल से ही भारत में सिक्के चले आए हैं। मौर्य, गुप्त, चोल, विजयनगर, मुघल और ब्रिटिश शासकों द्वारा जारी किए गए सिक्कों में विभिन्न चिन्ह, चित्रण और पाठों का प्रयोग हुआ है। ये सिक्के न केवल वित्तीय मानक होते थे, बल्कि इतिहास, सांस्कृतिक और सामाजिक सन्देशों को भी प्रस्तुत करते थे।

सिक्कों के माध्यम से हम भारतीय समाज की विविधता, धार्मिक अनुकरण, व्यापारिक संबंध, और राजनीतिक व्यवस्थाओं के बारे में अधिक जान सकते हैं। इसीलिए, भारतीय सिक्कों का इतिहास हमारी धार्मिक, सांस्कृतिक और अर्थव्यवस्था के विकास के साथ-साथ, हमारी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भारतीय संविधान का इतिहास

भारतीय संविधान का इतिहास एक रोमांचक कहानी है, जो हमारे देश के स्वतंत्रता और समृद्धि की उत्कृष्ट प्रतिष्ठा को दर्शाता है। यह न तो केवल एक कानूनी दस्तावेज़ है, बल्कि एक विचारशील समझौता है जो हमारी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवनशैली को प्रभावित करता है।

भारतीय संविधान का निर्माण 20वीं सदी के मध्य में हुआ, जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश नई पहचान की तलाश में था। इस संविधान की तैयारी में भारत के विभिन्न राजनैतिक दलों और सोचकर्ताओं की महत्वपूर्ण योगदान रहा।

संविधान निर्माताओं ने विभिन्न देशों के संविधानों, विचारशीलता और विधानन के संकेतों का अध्ययन किया। इसके बाद वे एक संविधान तैयार करने के लिए एक मंच पर आए, जो हर नागरिक के मूल अधिकार, स्वतंत्रता, और समानता को मजबूत करता है।

1950 में, भारतीय संविधान की स्वीकृति के साथ, देश ने एक नई यात्रा की शुरुआत की, जिसने लोकतंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान ने देश को एक लोकतांत्रिक, समावेशी और विकासशील मार्ग पर ले जाने का मार्गदर्शन किया है, जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर मिलें।

इस प्रकार, भारतीय संविधान का इतिहास हमें हमारे देश के गौरवशाली पारंपरिक विरासत और आधुनिक लोकतंत्र के संरचनात्मक विकास की एक रोमांचक कहानी से रूबरू कराता है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने भारतीय इतिहास को एक नया आयाम दिया। यह संग्राम उन वीर योद्धाओं और महिलाओं की कहानी है, जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता के लिए समर्पण किया।

इस संग्राम की शुरुआत गोरों के आक्रमण और उनकी अधिग्रहण नीतियों से हुई, जो भारतीय समाज को अत्याचारित कर रही थीं। लोगों में आंदोलन की भावना फैली, जिसने अपनी स्वतंत्रता के लिए साहसी और उत्साही विरोध की शुरुआत की।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न धाराओं के नेताओं और अग्रणी व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया, जैसे महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, और रानी लक्ष्मीबाई। इन नेताओं ने अपनी अद्वितीय रणनीति और वीरता से विद्रोह को नया जीवन दिया और भारतीय लोगों को स्वतंत्रता की ओर एकजुट किया।

1947 में भारत ने अंग्रेजों के शासन से आजादी हासिल की, और इस संग्राम का सफल परिणाम राष्ट्रीय एकता, स्वतंत्रता और समृद्धि का प्रतीक बना। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है, जो एक महत्वपूर्ण पथ प्रशस्त करता है, जिसने देश की शक्ति और आत्मविश्वास को पुनः स्थापित किया।

भारतीय सिनेमा का इतिहास

भारतीय सिनेमा का इतिहास बहुत विविध और समृद्ध है, जिसमें व्यापारिक सफलता, कला की उन्नति और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है। यह इतिहास भारतीय समाज, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रवृत्तियों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है।

भारतीय सिनेमा की शुरुआत साधारणत: 1913 में हुई थी, जब धर्मचंद्र गोविंद फाड़के ने भारतीय सिनेमा का पहला चलचित्र ‘राजा हरिश्चंद्र’ निर्मित किया। इसके बाद से भारतीय सिनेमा का सफर बहुत दूर तक पहुँच चुका है।

सिनेमा के माध्यम से न केवल मनोरंजन मिला, बल्कि यह भारतीय समाज की धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक समस्याओं को उजागर करने का माध्यम भी बना। 1940s और 1950s में, भारतीय सिनेमा ने अपने विशेष रूप में ‘मुद्देबाज’ फिल्मों के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक विवादों को उजागर किया।

1960s से लेकर 1980s तक, भारतीय सिनेमा ने नई दिशाओं में विकास किया, जैसे की मॉडर्निटी, व्यक्तिगत और समाजिक विवादों के प्रति संवेदनशीलता, और कला का अभिनव आयाम।

1990s से लेकर आज तक, भारतीय सिनेमा ने वैश्विक प्लेटफॉर्म पर अपनी पहचान बनाई है। आधुनिक बनावट, तकनीकी उन्नति, विशेष प्रभावी कहानियाँ, और उत्कृष्ट अभिनय ने इसे विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कराया है।

भारतीय सिनेमा के इतिहास में नायकों और नायिकाओं के योगदान, निर्देशकों और निर्माताओं की समर्पणशीलता, और साहित्यिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यह सिनेमा न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह भी हमें समय के साथ बदलते समाज की धाराओं का पता लगाने में मदद करता है।

भारतीय शिक्षा का इतिहास और विकास

भारतीय शिक्षा का इतिहास एक गहरा और समृद्ध क्षेत्र है, जिसमें देश की सांस्कृतिक और आधारभूत धाराओं का प्रतिध्वनि है। यहां तक ​​कि विश्वभर में अपनी महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रमुख रहा है।

भारतीय शिक्षा का प्रारंभ वेदों के समय से होता है, जब गुरुकुल पद्धति में शिक्षा दी जाती थी। इस पद्धति में छात्र अपने गुरु के आश्रम में जाते थे और वहां विभिन्न विद्याओं का अध्ययन करते थे, जिनमें वेद, विज्ञान, गणित, तंत्र, और अन्य कलाएं शामिल थीं।

मध्यकालीन काल में, भारतीय शिक्षा व्यवस्था ने अपने विकास के माध्यम से शिक्षा को और अधिक प्रगतिशील बनाया। विभिन्न राज्यों और साम्राज्यों में शिक्षा के लिए संस्थाएँ स्थापित की गईं, जैसे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशीला, और उज्जैनी। इन संस्थाओं में विद्यार्थी अनेक विषयों में विशेषज्ञता हासिल करते थे।

ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय शिक्षा प्रणाली को प्रभावित किया गया, जब अंग्रेज सरकार ने व्यापक शिक्षा नीतियों को लागू किया। इसके बाद भारतीय शिक्षा प्रणाली में विभिन्न परिवर्तन हुए, जिसमें विशेष रूप से उच्च शिक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विकास हुआ।

स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सरकार ने शिक्षा को समानता, पहुँचनीयता और गुणवत्ता के मामले में सुधारने के लिए विशेष ध्यान दिया। आधुनिक विश्वविद्यालय, विशेषज्ञता केंद्र, और विशेषज्ञता के क्षेत्रों में प्रगति हुई है।

आज, भारतीय शिक्षा प्रणाली न केवल व्यापक और विविध है, बल्कि यह भी उत्कृष्टता, नवाचार, और समाजिक समर्थन की दिशा में अपने योगदान को बढ़ा रही है। शिक्षा के माध्यम से देश के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान किया गया है, जो आने वाले समय में भी निरंतर विकसित होता रहेगा।

भारतीय चित्रकला का इतिहास

भारतीय चित्रकला का इतिहास बहुत ही विविध और समृद्ध है, जो देश की सांस्कृतिक और कलात्मक धरोहर को दर्शाता है। इसका इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और विभिन्न कालों, सम्राटों, और समाज की प्रेरणाओं से प्रेरित है।

भारतीय चित्रकला की शुरुआत प्राचीन कला पत्थरों, शिलालेखों, और गुहाओं में पाई जा सकती है। यहां तक ​​कि हरप्पा और मोहनजोदड़ो के मौजूदा खुदाई साक्षात्कार ने इसे 2500 से 1500 ई.पू. के बीच तक प्रस्तुत किया है। इस समय के उपकरणों में तांबे, सोने और पारदर्शी रत्नों के उपयोग का भी उल्लेख किया गया है।

भारतीय कला का इतिहास

भारतीय कला का इतिहास विशाल और समृद्ध है, जो देश की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। इसका इतिहास हज़ारों वर्ष पुराना है और विभिन्न कालों, सम्राटों, धर्मों और समाज की प्रेरणाओं से प्रेरित है।

प्राचीन काल से शुरू होते हुए, भारतीय कला ने विभिन्न रूपों में विकसित होते हुए अपना अनूठा और साहसिक चेहरा प्रदर्शित किया है। शिल्पकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, चित्रकला, संगीत, नृत्य, और नृत्यशास्त्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय कला ने अपनी उपलब्धियों को प्रकट किया है।

भारतीय कला का अत्यंत महत्वपूर्ण और विशिष्ट पहलू उसके धार्मिक और आध्यात्मिक संदेशों में हैं। हिंदू, बौद्ध, जैन, और सिख धर्मों के प्रति समर्पण के साथ, भारतीय कला ने व्यापारिक, राजनीतिक, और सामाजिक परिदृश्यों को भी आत्मसात किया है।

मुघलकाल से लेकर ब्रिटिश शासन तक, भारतीय कला ने अपने आकर्षक और प्रभावशाली रूप के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक विवादों को उजागर किया है। आज, भारतीय कला अपनी विविधता और समृद्धता के लिए प्रसिद्ध है, जो वैश्विक मंच पर भी अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एक महत्वपूर्ण चरण है भारतीय इतिहास में, जिसने देश को अंग्रेज शासन से आजादी प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह आंदोलन भारतीय जनता के साहस, संघर्ष और संघर्ष का परिणाम है, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना समर्पण प्रदर्शित किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में हुई, जब अंग्रेजों के खिलाफ विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संकल्पों के विरोध में जनसमूहों ने आवाज उठाई।

1857 की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (जिसे विद्रोह भी कहा जाता है) ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला महत्वपूर्ण प्रक्षेपण किया, जिसमें विभिन्न राज्यों के नायकों ने मिलकर विद्रोह किया। हालांकि, इस विद्रोह को नियंत्रित कर लिया गया, लेकिन यह एक प्रेरणा स्त्रोत बना, जिसने बाद में और महत्वपूर्ण आंदोलनों को जन्म दिया।

महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने अपनी अद्वितीय अहिंसा, सत्याग्रह और सद्भावना के सिद्धांतों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया आयाम दिया। उनके नेतृत्व में, सामाजिक और राजनीतिक विरोध के खिलाफ भारतीय जनता ने विशाल और असंख्य आंदोलनों का आयोजन किया, जिनमें स्वराज्य, खिलाफत, असहमति आंदोलन, भारत छोड़ो, जलियांवाला बाग, और दांडी मार्च शामिल हैं।

1947 में भारत ने अंग्रेजों के शासन से स्वतंत्रता हासिल की, जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का सफल परिणाम बनाया। इस आंदोलन ने विश्व को दिखाया कि शांति और अहिंसा के माध्यम से भी राष्ट्रीय आजादी हासिल की जा सकती है।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने न केवल देश की स्वतंत्रता की प्राप्ति में महत्वपूर्ण योगदान किया, बल्कि यह भी एक समर्पितता का प्रतीक बना, जो आगे बढ़ते हुए विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

भारतीय स्थापत्य कला का इतिहास

भारतीय स्थापत्य कला का इतिहास देश की विविधता और समृद्धता का प्रतीक है, जो उसकी संस्कृति, धार्मिकता, और वास्तुकला के प्रति गहरे रूचि को दर्शाता है। यह कला उस समय से आती है जब मनुष्य ने अपनी आवासीय जरूरतों के लिए स्थायी स्थान बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी।

भारतीय स्थापत्य कला का प्रारंभ प्राचीन काल में हुआ, जब लोग अपनी आवासीय इमारतें बनाने में समर्थ हुए। वे नक्काशी, रंग, और भव्यता के साथ विभिन्न प्रकार की भव्य संरचनाओं को बनाने में माहिर थे।

भारतीय स्थापत्य कला ने अपने विकास के दौरान विभिन्न सम्राटों, साम्राज्यों और समाजों की प्रेरणा ली। शिलालेखों, मन्दिरों, पलेस, गुहाओं, स्तूपों, और अन्य विशेष स्थानों के निर्माण में भारतीय स्थापत्यकारों ने अपनी विशेषता दिखाई।

मौर्य, गुप्त, पल्लव, चोल, राजपूत, विजयनगर, मुघल, और विभिन्न प्राचीन राज्यों के काल में, भारतीय स्थापत्य कला ने अपनी विशेष पहचान बनाई। यहां तक ​​कि सम्राटों और राजाओं के प्रति उनकी विशेष गणराज्यकीय भावना को भी दर्शाया गया।

भारतीय स्थापत्य कला में वास्तुकला, स्थल निर्माण, यंत्रणा, स्थलीय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, और अंतिम रूपांतरण की विशेषताएँ हैं। इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धता को प्रकट किया जाता है, जो आज भी इसकी महत्वपूर्ण धारा रही है।

भारतीय गणित का इतिहास

भारतीय गणित का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और दुनिया भर में इसकी महत्वपूर्ण योगदान को माना जाता है। भारतीय गणित ने वैज्ञानिक और गणितीय विकास में अपना विशेष स्थान बनाया है, जिसमें गणितीय सिद्धांतों, सूत्रों, और अध्ययनों की एक व्यापक परंपरा शामिल है।

भारतीय गणित का अध्ययन वेदों के काल से शुरू हुआ, जहां गणना, रचनात्मक निर्माण, और विभिन्न गणितीय सूत्रों का विकास हुआ। वेदों में गणितीय विधाएँ, संख्या प्रणालियाँ, और गणना के सिद्धांत दर्शाए गए हैं, जिनमें संख्या सिद्धांत, अंकगणित, ज्योतिष, और गणितीय सूत्रों का विशेष उल्लेख है।

भारतीय गणित का विकास गुप्त साम्राज्य के दौरान और बाद में मैथमेटिक्स, जैन गणित, और आर्यभट्टीय काल में अपने उच्च स्तर पर था। भारतीय गणितकार ने शून्य के खोज, बीजगणित, ज्यामिति, रेखागणित, और अंकगणित में विभिन्न सिद्धांतों का विकास किया।

गणितीय शास्त्रों में सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मगुप्त की बीजगणित, आर्यभट्ट की आर्यभट्टीय, और भास्कराचार्य की लीलावती जैसी महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं। इन ग्रंथों में गणितीय सूत्र, समीकरण, त्रिकोणमिति, और गणितीय समस्याओं का विस्तारपूर्ण विवेचन किया गया है।

भारतीय गणित के योगदान ने गणितीय सोच और विकास को एक नया दिशा दी, जो आज भी अंतरराष्ट्रीय गणित में महत्वपूर्ण है। इसका इतिहास भारतीय सभ्यता, विचार, और विकास की प्रमुख धारा रहा है, जिसने गणितीय ज्ञान को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास

भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला का इतिहास देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये कलाएं भारतीय समाज की सोच और धारणाओं को प्रकट करती हैं, जो विभिन्न कालों में विकसित हुईं और उनकी समृद्धता को दर्शाती हैं।

भारतीय चित्रकला का इतिहास प्राचीनकाल से ही शुरू होता है, जब लोग पत्थरों, शिलालेखों और गुहाओं में अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। इसकी शुरुआत वेदों और उनकी उपनिषदों में मिलती है, जहां चित्रण का उल्लेख मिलता है। भारतीय चित्रकला ने समय के साथ विभिन्न धार्मिक संस्कृतियों, राजनीतिक प्रणालियों और सामाजिक परिदृश्यों को दर्शाया है।

मूर्तिकला भी भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें देवी-देवताओं, राजाओं और महापुरुषों की मूर्तियाँ बनाई जाती थीं। इन मूर्तियों को धार्मिक और सामाजिक प्रतीक के रूप में माना गया है, जो समुदाय की एकता और संस्कृति को प्रतिष्ठित करती हैं।

मौर्य, गुप्त, पल्लव, चोल, विजयनगर, मुघल, और ब्रिटिश शासकीय काल तक, भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला ने अपने रूपांतरण में विशेष विकास दिखाया। हर काल में यह कलाएं समाज की भावनाओं, धार्मिकता के प्रति समर्पण और विशेषता का प्रतीक रही हैं।

भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला ने विभिन्न क्षेत्रों में अपना अद्वितीय योगदान दिया है, जैसे कि वास्तुकला, रंगमंचकला, लिपिकला, और भावनात्मक व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा। इनका इतिहास भारतीय संस्कृति और कला की गहरी पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, जो आज भी उसकी विविधता और समृद्धता को दर्शाता है।

PDF

भारतीय इतिहास- Indian history PDF

English grammar syllabus List for all government exams pdf

Leave a Comment